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रानी कर्णावती की जीवनी - रानी कर्मवती की कहानी

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रानी कर्णावती कौन थी? अक्सर यह प्रश्न रानी कर्णावती की जीवनी, और रानी कर्णावती का इतिहास के बारे मे रूची रखने वालो के मस्तिष्क मे जरूर आता है। रानी कर्णावती जिन्हें एक और नाम रानी कर्मवती के नाम से भी जाना जाता है। रानी कर्णावती मेवाड़ के राजा राणा संग्राम सिंह की पत्नी थी। जिन्हें राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता है। रानी कर्णावती का जन्म कब हुआ? रानी कर्णावती के माता-पिता कौन थे? रानी कर्णावती का जन्म स्थान? आदि सवाल इतिहास के पन्नों मे अज्ञात है। उनके बाल जीवन का इतिहास अज्ञात जरूर परंतु उनके विवाहिक जीवन का इतिहास, शौर्य, साहस, वीरता, पराक्रम से भरा है।   रानी कर्णावती की हिस्ट्री इन हिंदी राजस्थान में मेवाड़ नामक एक प्रसिद्ध स्थल है, जहां कभी राणा संग्राम सिंह राज्य करते थे। कुछ हिन्दू राजाऔं  को उनका संरक्षण भी प्राप्त था। उनके संरक्षण में हिन्दू  राजा अपने को सुरक्षित समझते थे। राणा संग्राम सिंह के अंतर्गत सात बड़े राजा थे। वे सभी राणा के अधीन माने जाते थे। राणाजी भारतवर्ष में हिन्दू  राज्य स्थापित करना चहाते थे। इसी के चलते इतिहासकारों ने उन्हें सम्मानित किया। सम्मान में उन्ह...

हाड़ी रानी का जीवन परिचय - हाड़ी रानी हिस्ट्री इन हिन्दी

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सलुम्बर उदयपुर की राज्य की एक छोटी सी रियासत थी। जिसके राजा राव रतन सिंह चूड़ावत थे। हाड़ी रानी सलुम्बर के सरदार राव रतन सिंह चूङावत की पत्नी थी। हाड़ी रानी भारत के इतिहास की वह वीर क्षत्राणी है। जिन्होंने अपने पति के मन की दुविधा को दूर करने के लिए अपने पति की मृत्यु से पहले ही सती हो गई थी। हाड़ी रानी की कहानी भारत के इतिहास की एक सहासिक कहानी है, अपने इस लेख मे हम हाड़ी रानी की जीवनी, हाड़ी रानी का जीवन परिचय, हाड़ी रानी की कहानी, हाड़ी रानी हिस्ट्री हिन्दी मे जानेगेंं हाड़ी रानी की कहानी रूपनगर की राजकुमारी रूपवती के रूप की प्रशंसा सुनकर बादशाह औरंगजेब ने बलवत उससे विवाह करना चाहा। जब रूपवती को यह समाचार ज्ञात हुआ, तब उन्होंने अपने कुल पुरोहित द्वारा उदयपुर के परम प्रतापी महाराणा राजसिंह जी पास एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा था—- औरंगजेब मुझे जबरदस्ती ब्याहना चाहता है, परंतु क्या राजहंसिनी गिद्ध के साथ जाएगी! क्या पवित्र वंश की कन्या म्लेच्छ को पति बनाएगी! इस प्रकार के आशय पत्र मे लिखकर अंत में लिखा कि — सिसौदिया कुलभूषण और क्षत्रिय वंश शिरोमणि! मैं तुमसे पाणिग्रहण की प्राथना करती हूँ। शुद्ध ...

राजबाला की वीरता, साहस, और प्रेम की अदभुत कहानी

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राजबाला वैशालपुर के ठाकुर प्रतापसिंह की पुत्री थी, वह केवल सुंदरता ही में अद्वितीय न थी, बल्कि धैर्य और चातुर्यादि गुणो में भी कोई उनके समान न था। अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करतीं थी, और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उन्होंने अपने पति की इच्छा के प्रतिकूल कोई काम किया हो। राजबाला का विवाह ओमरकोटा रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनारसिंह के पुत्र अजीतसिंह से हुआ था। अनारसिंह के पास एक बहुत बड़ी सेना थी, जिससे कभी कभी वह लूटमार भी किया करता था। एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कही से आ रहा था। अनारसिंह अपनी सेना लेकर उसपर टूट पड़ा। राजबाला की रोमांचक कहानी राव के सिपाही बडे वीर थे। दोनो सेनाओं मे खूब संग्राम हुआ। अंत मे अनारसिंह की पराजय हुई, और उसकी सब सेना तितरबितर हो गई। इस पराजय के कारण अनारसिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया। राजा राव ने सब जागीर छीन ली और उसे देश निकाले की आज्ञा दी गई। अब अनारसिंह अपने ही किए पर पछता रहा था। परंतु क्या करता, अब जो हो गया सो हो गया। अंत में वह सोडा को छोडकर वह दूसरे राज्य के एक छोटे से गांव मे जा बसा। उसका हाथ तो पहले से ही तंग था, अब ...

कर्पूरी देवी कौन थी, क्या आप राजमाता कर्पूरी के बारे मे जानते है

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राजस्थान में एक शहर अजमेर है। अजमेर के इतिहास को देखा जाएं तो, अजमेर शुरू से ही पारिवारिक रंजिशों का तथा अनेक प्रकार के षड्यंत्रो का केंद्र रहा है। अजमेर में पृथ्वीराज द्वितीय राज्य करते थे। उनके कोई संतान न थी। वे नि:संतान ही मृत्युलोक को प्राप्त हो गए। उनके एख चाचा थे। जिनका नाम सोमेश्वर देव था। सोमेश्वर देव को अजमेर की गद्दी पर बैठने के लिए कहा गया। वे थोडे दिन ही राजगद्दी पर बैठे थे, कि तभी उनकी माता जी उन्हें गुजरात लेकर चली गई। इसकी एक वजह थी। उनकी माता जी सोमेश्वर देव को अजमेर की कलह से बचाना चाहती थी। गुजरात में सोमेश्वर देव का विवाह हुआ। उनकी पत्नी का नाम कर्पूरी देवी था। कर्पूरी देवी राजपूत घराने में ब्याही गई। उनके पिता त्रिपुरा के राजा थे। कर्पूरी देवी की जीवनी – राजमाता कर्पूरी देवी का जीवन परिचय कर्पूरी देवी को जीवन में कभी शांति नही मिली। राजघराने में जन्म लेने के बावजूद वे खूश नहीं थी। जब उनकी शादी हुई तब भी उन्हें शांति नहीं मिली, खुशी नहीं मिली। उनका सारा जीवन कांटों से घिर गया। राजपूत घराने में एक अबोध बालक का जन्म हुआ। यह बालक यह बालक कर्पूरी देवी की कोख से पैदा ह...

रानी जवाहर बाई की बहादुरी जिसने बहादुरशाह की सेना से लोहा लिया

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सन् 1533 की बात है। गुजरात के बादशाह बहादुरशाह जफर ने एक बहुत बड़ी सेना के साथ चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। उस समय कायर और विलासप्रिय राणा विक्रमादित्य चित्तौड़ की गददी पर था। रानी जवाहर बाई इसी कायर की राजरानी थी। विक्रमादित्य की कायरता के चलते सबको चिंता हुई की चित्तौड़ का उद्धार कैसे होगा। सिसौदिया कुल के गौरव की रक्षा कैसे होगी, किस रिति से राजपूत वीर स्वदेश की रक्षा कर सकेंगे।?। हाड़ी रानी का जीवन परिचय – हाड़ी रानी हिस्ट्री इन हिन्दी ऐसी चिंताओं से सब चिंतित थे कि देवलिया प्रतापगढ़ के रावल बाधगी अपनी राजधानी से आकर राणा के साथ मरने मारने को तैयार हुए। उनके नेतृत्व अधीनता में सब राजपूत वीरता के साथ युद्घ के लिए तैयार हो गए। मुसलमान सेना राजपूतो की अपेक्षा अधिक थी, परंतु फिर भी राजपूत विचलित न हुए। चित्तौड़ की रानी जवाहर बाई की वीरता की कहानी   सबने शपथ खाई कि या तो पूर्ण पराक्रम से लड़कर विजय प्राप्त करेंगे या युद्ध में प्राण देकर वीरगति प्राप्त करेंगे। युद्ध के आरंभ होते ही बहादुरशाह ने पहले अपनी तोपों से ही काम लिया, परंतु राजपूत, तोपों की गर्जना सुनकर द्विगुणित उत्साह से उत्साहित हो...

रानी प्रभावती एक सती स्त्री की वीरता, सूझबूझ की अनोखी कहानी

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रानी प्रभावती वीर सती स्त्री गन्नौर के राजा की रानी थी, और अपने रूप, लावण्य व गुणों के कारण अत्यंत प्रसिद्ध थीं। इनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर एक यवन बादशाह ने गन्नौर पर चढाई कर दी। यह समाचार पाकर रानी प्रभावती बड़ी वीरता के साथ लडी। जब बहुत से वीर सैनिक मारे गए, और सेना थोडी रह गई, तब किला यवनों के हाथ में चला गया। रानी प्रभावती इस पर भी नहीं घबराई और बराबर लड़ती रही। जब किसी रीति से बचने का उपाय न रहा तो वह अपने नर्मदा किले में चली गई, परंतु यवन सेना उनका बराबर पीछा करती रही। बडी कठिनाई से किले में घुसकर रानी ने किले का फाटक बंद करा दिया। यहां भी बहुत से राजपूत सैनिक लडते लड़ते मारे गए। सती स्त्री रानी प्रभावती सती रानी प्रभावती की कहानी यवन बादशाह ने रानी प्रभावती के पास एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा था— सुंदरी! मुझे तुम्हारे राज्य की इच्छा नहीं है। मै तुम्हारा राज्य तुम्हें लौटाता हूँ। और भी संपत्ति तुम्हें देता हूँ, तुम मेरे साथ विवाह कर लो। विवाह होने पर मैं तुम्हारा दास बनकर रहूंगा। रानी सती मंदिर झुंझुनूं राजस्थान – रानी सती दादी मंदिर हिस्ट्री इन हिन्दी रानी को यह पत्र पढ़कर क्रोध आया, प...

मदर टेरेसा की जीवनी - मदर टेरेसा जीवन परिचय, निबंध, योगदान

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मदर टेरेसा कौन थी? यह नाम सुनते ही सबसे पहले आपके जहन में यही सवाल आता होगा। मदर टेरेसा यह वो नाम हैं जिसे भारत का बच्चा बच्चा जानता है। क्योंकि स्कूलों के पाठयक्रमों मे मदर टेरसा के बारें में पढ़ाया जाता है और प्रश्नपत्रो में मदर टेरेसा पर निबंध, मदर टेरसा की जीवनी, मदर टेरसा का जीवन परिचय, मदर टेरेसा का योगदान के विषय में लिखने के लिए भी आता रहता है। मदर टेरेसा ऐसे व्यकतित्व की धनी थी, जिन्होंने दुखी और पीडित व्यक्तियों की सेवा साधना में अपना सम्मपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। जिसके लिए उन्हें विश्व का सर्वोच्च नोबेल पुरस्कार, शांति और सदभावना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रदान किया गया। ममतामयी मां, गरीबों की मसीहा, विश्व जननी और कही तो मदर मैरी जैसे अनेक उपनामो से पुकारी जाने वाली मदर टेरेसा का जीवन मानव सभ्यता के इतिहास में एक ऐसा अध्याय बनकर उभरा, जिसका उदाहरण ओर कही देखने को नहीं मिलता है। मदर टेरेसा का जन्म कहांं हुआ था यह सच है कि मदर ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत मे ही रहकर दीन दुखियों की सेवा करने में बिताया और वह भारतीय नागरिक भी थी, किंतु वह  जन्म से ही भारत की नाग...

अच्छन कुमारी पृथ्वीराज चौहान की पत्नी की वीरगाथा

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अच्छन कुमारी चंद्रावती के राजा जयतसी परमार की पुत्री थी। ऐसा कोई गुण नहीं था, जो अच्छन में न हो। वह बडी सुंदर, चतुर, धर्मात्मा और सुशील स्त्री थी। अभी जब वह छोटी ही थी, एक दिन हंसी हंसी में उनके पिता ने पूछा– बेटी तू किससे अपना विवाह करना चाहती है?। अच्छन ने कहा– मै तो अजमेर के राजकुमार पृथ्वीराज से विवाह करूंगी!। पृथ्वीराज चौहान अजमेर के राजा सोमेश्वर सिहं चौहान का पुत्र था। वह अपनी वीरता के लिए विख्यात था। जयतसी ने मुस्करा कर कहा– अच्छा! परंतु यदि उसने अस्वीकार कर दिया तो क्या होगा?। अच्छन कुमारी बोली– क्या कोई राजकुमार भी किसी राजपुत्री की बात टाल देगा?। यदि विवाह न हुआ तो मै जीवन भर कुवांरी रहूंगी। जयतसी ने तुरंत ही एक भाट के हाथ पृथ्वीराज के पास एक नारियल भेजा। उस समय छोटी अवस्था में होने के कारण विवाह नहीं हुआ। रानी सती मंदिर झुंझुनूं राजस्थान – रानी सती दादी मंदिर हिस्ट्री इन हिन्दी उस समय गुजरात मे राजा भोला भीमदेव जो अपनी वीरता, शूरता और धन के लिए जगत विख्यात था, का शासन था। जब उसने सुना कि अच्छन कुमारी बडी सुंदर है तो उसने अपने दूत को उनका हाल जानने के लिए भेजा। थोडे दिनों बा...

रामप्यारी दासी का मेवाड़ राज्य के लिए बलिदान की कहानी

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भारत के आजाद होने से पहले की बात है। राजस्थान कई छोटे बडे राज्यों में विभाजित था। उन्हीं में एक राज्य मेवाड़ भी था। मेवाड़ की राजधानी उदयपुर थी। राजस्थान में राज्य का शासन राजा के हाथ में होता था। उस समय मेवाड़ की गद्दी पर राणा अड़सीजी आसीन थे। उनके दो पुत्र थे। एक का नाम हमीर सिंह था और दूसरे का नाम भीम सिंह। मूक बना कालचक्र सब देखता रहा। होनी टली नहीं। राणा अड़सीजी अपनी प्रजा को छोडकर हमेशा हमेशा के लिए चले गए। अड़सीजी के निधन के बाद राज्य पर मुसीबत के बादल घिर आए। उनके दोनों पुत्र अभी छोटे ही थे। राज्य में चोरी चकारी धडल्ले से चल रही थीं। राज्य में चूड़ावत और शक्तावत दो ऐसे सरदार थे, जो एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गए थे। राणाजी के बाद राज्य का शासन रानी सरदार कंवर ने संभाला। उस राज्य के नियम कानून दूसरे राज्यों से भिन्न थे। वहां परदे की प्रथा थी। रानी अपने चेहरे पर परदा रखती थी। पुरूष अधिकारियों से बातचीत नहीं करती थी। उनकी बातचीत का माध्यम एक दासी थी। रानी की उस दासी का नाम रामप्यारी था। रानी सती मंदिर झुंझुनूं राजस्थान – रानी सती दादी मंदिर हिस्ट्री इन हिन्दी जब कोई व्यक्ति रानी से...